रहने दो हमें बक्त के अंधकारो में,
न चहिये मुझे ये दुनिया के सितारें|
अहम् को न चिहए कोई चिराग,
रहने दो उसका वास उसके तले |
ढूढ़ रहा हूँ वोह महा परा करमी ,
जिसने जग के तरप को ठाप दिए
रहने दो हमें बक्त के अंधकारो में,
न चहिये मुझे ये दुनिया के सितारें|
अहम् को न चिहए कोई चिराग,
रहने दो उसका वास उसके तले |
ढूढ़ रहा हूँ वोह महा परा करमी ,
जिसने जग के तरप को ठाप दिए
मेरे करम मुझे अब याद आने लगे हैं,
वक्त का पहिया जब से गाने लगे हैं |
अपने शिकवे शिकायत अब किस्से करूं,
मेरे अपने ही मेरे कर्मो से भागने लगे है |
जिनके लिए हम जानका दाव लगाके चले थे,
वोह मुँह मोड़ कर हमसे अब चलने लगे हैं |
मेरे रिश्ते मेरे फ़रिश्तो से जाते दिखे हैं,
जब से मेरे करम उनको पुरे होते दिखे हैं |
हार हे तो हार को हार कर चल,
हार हे तो हार का हार बना कर चल,
हार हे तो हार पर हुहुँकार का वार कर |
जीत कब तक पीठ दिखायगी ?
जीत कब तक मुँह मोड़ेगी ?
जीत कब तक पीछा छोड़ेगी ?
मौसम एक नही होता,
रंग एक नही होता,
पल एक नहीं होता |
रात मे दिन का इंतज़ार कर,
अपने को ओर बलवान कर,
हर पल ईश्वर का जाप कर |
शौर्य हे तो हिमालय पर चढ़,
शौर्य हे तो माई का लाल बन,
उसके दूध का उधार पूरा कर |
गिर चूका हे तो कया,
आकाश का धायन कर,
हार की बेड़ी तोड़, तू विजयी बन |
हार हे तो हार को हार कर चल,
हार हे तो हार का हार बना कर चल,
हार हे तो हार पर हुहुँकार का वार कर |
हार की हार का हाहाकार कर ..